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गुरुवार, 2 जुलाई 2009

ईश्वर से डरें नहीं, प्रेम करें और प्रेरणा लें

हिन्दुत्व कहता है कि ईश्वर हमारा परमपिता है, हम उसकी संतान हैं । वही बच्चा अपने माता-पिता से डरता है जो गलत काम करता है या उनकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करता है । ईश्वर की इच्छा क्या हो सकती है? अपनी सृष्टि को बनाये रखना ही उसकी इच्छा है । वह पालनकर्ता है, हम भी किसी न किसी के पालन-पोषण में सहायक बनें । अपनी स्त्री और संतान का उचित लालन-पालन भी उत्तम कार्य है । वह दयालु है, हम भी दया दिखायें । वह समदर्शी है, हम भी यथासम्भव समानता एवं न्याय को जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान दें । यह प्रकृति ही ईश्वर का शरीर है । प्रकृति से प्रेम ईश्वर से प्रेम करने के समान ही है । हम ईश्वर और उसकी प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करें ।

ईश्वर न तो चाटुकारिता से प्रसन्न होता है, न ही बलि से और न ही धन और रुपया-दान से । हम अकर्मण्य रहकर राम-राम जपते रहें और चाहें कि हमारी चाटुकारिता से प्रसन्न होकर ईश्वर हमें सारे सुख-साधन उपलब्ध करा दे तो यह हमारी भूल है ।

पशु-पक्षियों की बलि से ईश्वरीय न्याय में बाधा पहुँचती है । हिंस्र पशु भी अकारण शिकार नहीं करते । ईश्वर या किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए यदि किसी को बलि देना है तो उसे अपने अहं की बलि देना चाहिए ।

समस्त धन-सम्‍पत्ति का अनन्त काल का स्वामित्व ईश्वर का ही है, अत: धन-सम्‍पत्ति से उसे नहीं रिझाया जा सकता । धन-सम्‍पत्ति का दान पुजारियों के भरण-पोषण एवं मन्दिरों के अनुरक्षण के लिए किया जाता है ।

जहाँ-जहाँ राजतंत्र है, प्रत्येक राजकुमार स्वयं को शासन एवं राज-काज संचालन के योग्य मानता है । ऐसा ही भाव प्रत्येक व्यक्ति को रखकर यह समझना चाहिए कि वह भी परमपिता परमेश्वर की संतान है । इस प्रकार लोकतंत्र में वह हीनभावना से मुक्त होकर अपनी क्षमता के अनुसार अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है ।

ईश्वर में विश्वास भय से मुक्त करता है । ईश्वर में अति विश्वास और अपार श्रद्धा से मृत्यु के भय से भी मुक्ति मिलती है । जल की एक बूँद को महासागर से क्या भय; महासागर में गिरकर बूँद का अस्तित्व महासागर में विलीन हो जायेगा । बूँद भी महासागर बन जायेगी । हिन्दुत्व का सर्वोच्च विचार प्रलय से भी भयभीत नहीं है क्योंकि उस समय कर्मफल से सबको मुक्ति मिल जाती है । कयामत के समय किसी से पुण्य-पाप का हिसाब नहीं लिया जाता । स्वर्ग नरक का अस्तित्व नहीं है । अत: किसी को इन स्थानों पर भेजे जाने का प्रश्न ही नहीं उठता । प्रलय के समय सभी मुक्त होकर ब्रह्ममय हो जाते हैं ।